RATH YATRA STORY :-
RATH YATRA PHOTO |
RATH YATRA, ORISSA(TUESDAY, 23 JUNE2020)
रथ यात्रा का कुछ विवरण :- ************************
महान भारत देश के ओरिशा राज्य के तटवर्ती शहर पूरी में भगवान जगन्नाथ का एक बोहोत विशाल मन्दिर है। माना जाता है जो भक्त बड़े प्रेम से इस मंदिर में आता है, उसका हर मनोकामना पूरी होती है। जगन्नाथ जी का यात्रा हिन्दू पंचाग के अनुसार हमेशा की तरह से आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथी को निकाली जाती है और उसके अलावा जगन्नाथ रथ उत्सव दस दिनों का होता है । जगन्नाथ रथयात्रा में सबसे आगे भगवान बालभद्र का रथ और बीच में उनकी बहन सुभद्रा, अंतिम में उनके भाई भगवान जगनाथ जी का रथ होता है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके भ्राता बलराम एवं उनकी बहन सुभद्रा की प्रतिमाये बड़े प्रेम और ज्यादा भाव से रखी जाती है साथी ही उन्हे नगर का भ्रमण करवाया जाता है। यात्रा के रथ लकड़ी के बने मजबूर होते है, जिन्हें भक्त खिचकर चलाते है। भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिए लगे होते है एवं बड़े भाई बलराम के रथ में 14 और प्रिय बहन सुभद्रा के रथ में 12 पहिए लगे होते है जो देखने में बड़े मनभावक रगते है। यात्रा का वर्णन नारद पुराण, पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण और स्कंद पुराण आदि में वर्णन है।
जगन्नाथ रथयात्रा का इतिहास का संक्षिप्त लोकप्रिया कहानियां :- **************************** एक दिन भगवान जगन्नाथ की प्यारी बहन सुभद्रा द्वारका देखने का मन हुआ तो वह अपने भाई के पास गई और प्रेमय तरीके से बोली भाई मुझे क्या अपने इस सुंदर नगरी का भ्रमण नहीं कराएंगे। बहन प्रेम के कारण भाई अपनी बहन को मना नहीं कर पाए अतः उन्होंने अपने रथ में अपनी प्रिय बहन सुभद्रा को साथ लेकर पूरे नगर में भ्रमण किए।
भगवान जगन्नाथ की मनमोहक एक प्रसिद्ध प्राचीन कहानी :- ***********************************
मालवा के महान राजा इंद्रद्युम्न भगवान जगन्नाथ के एक महान भक्त थे।उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान जगन्नाथ ने उनको दर्शन देते हुए बोले हे राजन में तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं मांगो तुम्हे क्या वर चाहिए तो राजन ने कहा भगवान मुझे क्या चाहिए जिस भक्त को आपकी दर्शन प्राप्त हो जाए उसे भला क्या चाहिए तो भगवान बोले भक्त मेरा दर्शन खाली नही जा सकता इसलिए तुम्हे कुछ न तो कुछ वर तो मागना ही होगा । राजन ने बोले भगवान अगर आप कुछ देना चाहते है तो मुझे आपकी प्रति असीम भक्ति चाहिए भगवान ने बोले तथासदु यह कहकर भगवान ने बोले राजन नीलंचल पर्वत पर मेरा एक मूर्ति है तुम उस मूर्ति को एक विशाल मन्दिर बनाकर उसे अस्थापित कर दो जो भी भक्त अपनी असीम भक्ति भाव से उस मूर्ती की पुजा करेगा उसे सारी दुःखो से मुक्ति मिलेगी तथा उसे मोक्स कि भी प्राप्ति होगी।
राजन ने अपने मंत्री को तुरन्त बुलाकर उसे सारी बात बताई ओर उसे उस मूर्ति का पता लगाने को कहा। मंत्री ने मूर्ति का पता लगाया और उसे छल से सबल कबीले से मूर्ति प्राप्त कर राजा को सोप दी। राजा यहसब बातो से अंजान मंदिल निर्माण कार्यों में लग गए इधर अपने भगवान से दुर होने के कारण कबीले के लोग दुःखी हो गए । भगवान अपने भक्तों की दुःख देख नहीं पाए ओर दुवारा उसी अस्थान पर विरजमान हो गए ।राजा को जब इस बातो का पता चला तो उसने भगवान से माफी मांगी तो भगवान ने बोले तुम जगकल्यान हेतु एक मंदिर का निर्माण करो में उस मंदिर में विराजमान हो जाऊंगा यह कहकर भगवान अद्रिश हो गए।
राजा मन्दिर निर्माण काजो में लग गए । कुस दिन बाद देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा एक वृद्ध रूप उस मूर्ति निर्माण हेतु राजा के समीप आए। उन्होनें राजा से बोले राजन में उस मूर्ति का निर्माण कर सकता हूं परन्तु मेरी एक सर्त है तो राजन ने कहा वह क्या है तो ब्रिध इंसान ने बोला राजन मुझे उस मूर्ति के निर्माण हेतु 21दिन लगेंगे इसलिए मुझे एक एकांत कमरा चाहिए परन्तु उस दौरान कोई भी उस कमरे में न प्रवेश करे।राजा ने उसकी बात मान ली । विश्वकर्मा ने अपना कार्य उस कमरे में सुरू कर दिए कुस दिन एसे ही बीत गई रानी को मूर्ति को देखने का मन हुआ इसलिए रानी ने राजा से जिद की। राजा रानी की जिद के सामने हार मान लिए ओर उन्होनें कमरे में प्रवेश कर गए तभी विश्वकर्मा उस कमरे से अदृश्य हो गए फलसरूप मूर्ति अदुरी रह गई। आज भी उस अधुरी मूर्ति उस मन्दिर में पाई जाती है।
ज्ञान कि बातें :- **************
ज्ञान कि बातें :- **************
प्रेम ही पुजा, प्रेम ही भगवान, प्रेम ही सत्य, प्रेम ही भक्ति, प्रेम ही सक्ती, प्रेम ही भगवान जगन्नाथ।।
सत्य ही प्रेम, सत्य ही भगवान, सत्य ही मुक्ति , सत्य ही विनाश, सत्य ही जीवन का आधार, सत्य ही है जगन्नाथ ।।
भगवान जगन्नाथ की प्रेम तथा भक्ति भाव से पुजा जाए तो उन्हें कहीं नहीं खोजने की जरूरत है क्युकी वह परब्रह्म, अभिनाशी है तो वहीं मुक्ति दाता है,वह तो करूणानिधान है। धरती पर जब पाप का विस्तार होता है तथा निर्दोषों पर अत्याचार होता है तब वही परब्रह्म अलग अलग रूपों में धरती पर आकर पाप का संगार करते है।
प्रेम से बोलो भगवान जगन्नाथ की जय।
-----------------××××××-----------------
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें