सिद्धिविनायक श्री गणेश जी के बारे में :-
भगवान श्री गणपति जी को देवो में प्रथम पूजन्य होने का स्थान प्राप्त है ।माना जाता है कि कोई भी शुभ काम करने से पहले श्री गणपति जी की पूजा करना आवश्यक है। उन्हें कई नामों से संभोदित किया जाता है जैसे मंगलमूर्ति, महेश्वर, प्रथमेश्वर, शुभम, सिद्धिदाता, सिद्धिविनायक आदि।
गणपति जी का नाम का अर्थ :-
शिवपुराण के अनुसार :-
शिवपुराण में बताया गया है कि प्राचीन काल में मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर श्री गणेशजी का जन्म हुआ था। इसी कारण शुक्ल पश्र की चतुर्थी तिथि विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश जी का पूजन किया बड़े भक्तिभाव जाता है ।
प्रथम पूजनीय श्री सिद्धिविनायक भगवान श्री गणेश जी की जन्म कथा :-
एक मान्यता के अनुसार श्री गणेशजी ने भगवान शिव जी को माता पार्वती से मिलने से रोका था। वे अपनी माता पार्वती जी कि आदेश पालन करते हुए उन्होंने भगवान शिवजी को अपनी माता से मिलने से रोक दिया था । जब भगवान शिव ने रोकने का कारण जानना चाहा तो गणेश जी ने कहा माता का यह आदेश है की कोई भी कक्ष में प्रवेश न करे। भगवान शिव ने अपना परिचय देते हुए कहा अब मुझे जाने दो बालक। परंतु गणेश जी न माने । तब भगवान शिव क्रोधित होकर वहा से चले गए। जब यह बात शिवगणों को पता चली तो वह श्री गणेश जी को समझाने गए पर गणेशजी ने उनकी बातो को स्वीकार नहीं किया अंत में शिवगण और गणेशजी में युद्ध हुआ परिणाम सरूप शिवगण पराजित हो गए। वैसे ही अनेक देवता भी आए और वेलोग भी पराजित हुए। अंत में भगवान नारायण और ब्रह्मदेव गणेश जी के पास उपस्थित हुए एक ब्राह्मण के रूप में। वे लोग श्री गणेश जी को समझाने की कोशिश की पर उन्हें असफलता प्राप्त हुई अंत में भगवान नारायण और ब्रह्मदेव के साथ सारे शिवगंण तथा देवगन भगवान शिवजी के पास उपस्थित हुए त्राहिमाम करते हुए जब भगवान शिव ने उनकी हालत का कारण जाना तो वह अपने क्रोध पर काबू न रख पाए और उन्होनें अपने अमोक त्रिशुल से श्री गणेश जी के सर धड़ से अलग कर दिए। जब यह बात जगजननि माता पार्वती को पता चली तो वह अपने मृत्य पुत्र के पास दौरती हुई आई। अपने पुत्र को मृत्य अवस्था में देख वह बोहत क्रोधित हुई और उन्होंने वहा पर उपसतीथ सारे लोगो से सवाल किया कि मेरे पुत्र का क्या दोस है। वह तो केवल अपनी माता का आदेश पालन कर रहा था। क्या यही उसका अपराध है ? प्रश्न उन्होंने वहा पर उपस्थित त्रिदेव और देवगणों से पुचा लेकिन इसका उतर किसी के पास भी नहीं था। सबलोग खामोश होकर नजर नीचे किए खरे थे, अंत में माता-पिता ने यह उत्तर भगवान शिव से जाननी चाही। माता ने बोला तुम
तो देवो के देव महादेव है, आप मेरे प्रश्न के उतर क्यों नहीं देते मेरे पुत्र का दोश था? क्या अपने माता का आदेश पालन करना कहा का अपराध है? महादेव ने कुछ उतर नहीं दिया, तो माता-पिता ने कहा तो तत्पर त्रिशूर जैसे महा अमोक अस्त्र का इस्तेमाल करने का क्या कारण था महादेव? मेरा पुत्र निर्दोष है , मेरा पुत्र मुझे वापस चाहिए महादेव। मेरे पुत्र को जीवित करे । महादेव ने अपनी तपोबोल से गणेश जी के धड़ पर हाथी का सिर लगाकर उनको जीवन प्रदान की ।
भगवान श्री गणपति जी का मंत्र :- ॐ गण गणपताए नमः
भगवान श्री गणपति जी की पूजा कैसे करें और इसका प्रभाव क्या है :-
गणेश चतुर्थी पर भक्तों को दीपक जलाकर भगवान श्री गणेश जी के बड़े प्रेम से इस मंत्र का जाप करना चाहिए 'ॐ गण गणपताए नमः 'इस मंत्र का जाप हमे कम से कम 108 बार करना चाहिए तथा भगवान श्री गणेश जी को कपूर जलाकर उनकी आरती करनी चाहिए। इससे हमारे घर में शुभता का आरम्भ होगा और अशुभता का अंत ।
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