NAGPANCHAMI STORY |
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NAG PANCHAMI DATE :-SATURDAY,25JULY 2020
NAG PANCHAMI STORY |
पचांग के अनुसार सावन माह की शुक्ल पक्ष के पंचमी के रूप मे मनाया जाता है साथ ही इस दिन नाग देवता या सर्प की पूजा - आराधना की जाती है ।नाग देवता प्रसन्न होकर मनचाहा वरदान देते हैं। शास्त्रों में नागो को दूध से स्नान कराने की बात उल्लेख करती है और इस दिन अस्टनागो की पूजा कर पुण्य प्राप्त की जाती है।
भविष्य पुराण ग्रंथ के अनुसार :-
बड़े बुजुर्गों से सुनने को मिलता हे की वाराणसी (काशी) में नाग कुऑ नामक एक बोहोत पुराना अस्थान है जहा पर बहुत बड़ा मेला लगता है। मान्यता हे कि इस स्थान पर तक्षक नाग गरूड़ जी के भय से बालक रूप धारण करके काशी में संस्कृत शिक्षा लेने हेतु उस आश्रम में उपस्तिथ हुए थे। गरूड़ जी की इस बात की जानकारी उस समय नही जब इस बात का गरुड़ जी को मारूम हुए तबी उन्होंने उन्होंने तक्षक नागजी पर आक्रमण कर दिए। दोनो में ही बड़ा घमाशन युद्ध हुआ अंत में उस आश्रम के महान गुरू जी की आदेश पर गरुड़ जी ने तक्षक नाग जी को अभय दान दिया और उसी समय से यहा उनकी पुजा की जाति है।
इस दिन पुजा का कुछ बिशेष नियम निम्न है दिए गए हे :-
इस दिन दरवाजे के दोनों ओर गोबर से सर्पो की आकृति बनानी चाहिए साथ ही धुप, पुष्प आदि से इनकी बड़े प्रेम से पूजा करनी चाहिए। इसके बाद इंद्राणी देवी जी की पूजा दही तथा दुध, पुस्प आदि से उनकी पुजा करनी होती है तप्तश्चात भक्तिभाव से ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद स्वयं भी भोजन करना चाहिए। इस दिन द्रव्य दान करने से देव कुबेर जी कि दयादृष्टी बनती है। मान्यता यह भी है की अगर किसी जातक के घर में किसी सदस्य की मृत्यु सांप के काटने से हो जाए तो उन सदस्यो को बारह महीनों तक पंचमी का व्रत करना चाहिए और साथ ही इस ब्रत के फल से जातक के कुल में कभी भी सांप का भय कभी भी नही होगा।
नागपांचमी में नागपंचमी का महत्व विशेष :-
मान्योता है की इस दिन महिलाएं नाग देवता को अपने भाई के सरूप में पूजती है और मनोकामना पुरी करने के लिए उनसे प्राथना करती है की हे मेरे प्रिय भाई तुम हमेशा अपनी बहन की लाज की रक्षा करना।
नाग पंचमी का सीधा संबध इंसानो के कुण्डली में बिराजमान राहु -केतु से है। राहु और केतु परस्पर एक दूसरे से 180अंक पर रहते है अर्थात दोनो एक दूसरे से सप्तम भाव में विराजमान रहते है। कुंडली में राहु का सर और केतु का पुंछ सर्प का समाना माना गया है। सर्प के समान होने के कारण राहु और केतु से सम्बंधित समस्याओं के लिए नाग पंचमी का दिन सर्वश्रेष्ठ उपयोगी माना जाता है। कहते ही की दोपहर को राहु-केतु संबन्धित उपाए करने से इनसे संम्बधित सारी समस्याएं समाप्त होती है।
पौराणिक कथा कुछ संक्षिप्त कहानियां:-
विद्वानों की मान्यता है कि कई साल पहले किसान अपने 1 लड़की तथा तीन बच्चे थे। रोजाना की तरह उस दिन भी खेत में वह हल चला रहा था ,तो उसके फलमेवं में तीन बिंधकर सांप के तीन छोटे छोटे छोटे बच्चे मर गये। बच्चो की मौत पर मा नागिन विल्कने लगी और गुस्से में नागिन ने मारने वाले से बदला लेने का प्रण लिया। एक रात जब किसान अपने बच्चो के साथ सो रहा था तभी नागिन ने किसान और उसकी पत्नी और दो बच्चो को डस लिया, विश के कारण वेलोग तड़प तड़प कर उनकी मित्यु हो गई। दिन जब क्रोधित नागिन किसान कि पुत्री को डसने आई तो कन्या ने डरकर नागिन के सामने दुध का कटोरा रख दीया और हाथ जोड़कर नागिन से क्षमा मागने लगी । पंचमी का दिन था ,नागिन ने बच्ची की मासुमियत देखेकर नागिन को उस पर दया आने लगी। नागिन प्रसन्न होकर कन्या से वर मांगने को कहती है। लड़की बोली देवी नाग कन्या मेरे माता पिता व भाई जीवित कर दे, उनके अलावा मेरे इस दुनिया में मेरा कोई नहीं है। मैं उनसे बड़ा प्रेम करती हूं । उसी समय किसान का परिवार जीवित हो गया।
बारह पुराण के अनुसार इस दिन सृष्टि रचयिता रचयिता ब्रह्मा जी ने अपनी शक्ति से शेषनाग को अलंकृत किया था और पृथ्वी का भार धारण करने का काम प्रदान किए। शेषनाथ जी को उनके भक्त बड़े प्रेम से उनकी पूजन करते हैं। आज भी उसी परम्परा और प्रेम से उनकी पूजा किया जाता है ।क्षावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को भगवान वासुदेव श्री कृष्ण ने बृंदावन में विशाल नाग कालिया को परास्त करके लोगो का जीवन बचाया और साथ ही उन्होनें कालिया के फन पर नृत्य कर नथैया कहलाए। नागपुजा करने से भगवान शिव की अनुकम्पा हमेशा प्राप्त होती है।
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